कोई भ्रम नहीं, भंवर जितेन्द्र सिंह भरोसा हैं गांधी परिवार का

कहने को आजाद भारत में चाहे राजशाही खत्म होकर लोकतंत्र का राज चल रहा हो लेकिन अलवर रियासत के भंवर जितेन्द्र सिंह आज भी यहां के निवासियों के लिए राजा से कम नहीं हैं। आज भी ये सदैव जनता के सुख-दुख के सहभागी बने रहते हैं। यहां की जनता अपनी परेशानियों की अर्जियां अफसरांे के यहां कम और इनके यहां ज्यादा लेकर आती है। इनके निवास स्थान फूलबाग पैलेस पर आज भी ठीक वैसा ही जनता दरबार लगता है जो पहले लगा करता था और ये भी हैं कि अभिभावक की तरह जनता के हर दर्द को सुनकर उनकी हर मदद को सदैव तत्पर रहते हैं।

जन्म –

12 जून 1971 को महाराजा तेजसिंह के पौत्र एवं युवराज प्रतापसिंह के पुत्र रूप में जितेन्द्र सिंह का जन्म हुआ। इनका बचपन अलवर, मसूरी एवं दिल्ली में बीता।


शिक्षा –

मसूरी स्थित विन वर्ग एलएन स्कूल से आरंभिक शिक्षा प्राप्त की। दिल्ली विश्वविद्यालय से बीकॉम किया। जर्मनी से ऑटो मोबाइल में इंजीनियर का कोर्स किया


ननिहाल एवं ससुराल –


जितेन्द्र सिंह का ननिहाल बूंदी है। इनके नाना कर्नल बहादुर सिंह थे। ससुराल दादा सीबा हिमाचल प्रदेश। वर्तमान में ससुराल पक्ष के लोग संुदर नगर दिल्ली में रहते हैं।

राजनीतिक सफर –

भंवर जितेन्द्र सिंह अलवर शहर से दो बार 1998-2008 तक राजस्थान विधानसभा के सदस्य रह चुके हैं। राहुल गांधी के करीबी जितेन्द्र सिंह को कांग्रेस ने पहली बार 2009 में अलवर लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया जिस पर इन्होंने बडी जीत हासिल की। पहली बार सांसद चुने जाने पर भी गांधी परिवार से नजदीकी एवं भरोसे के चलते इन्हें केन्द्रीय मंत्रिपरिषद में शामिल किया गया। जिसमें इन्होंने केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री, युवा विकास एवं खेल मंत्री का स्वतंत्र प्रभार एवं रक्षा राज्य मंत्री का प्रभार संभाला। इनको प्रमुख संसदीय समितियों का सदस्य भी बनाया गया। कांग्रेस आलाकमान ने लोकसभा प्रत्याशी बनाकर इन पर आगे भी भरोसा जताया लेकिन मोदी लहर के चलते इन्हें सफलता नही मिली। लेकिन अभी भी हाईकमान का इन पर उतना ही भरोसा है।

एआईसीसी महासचिव और कार्यसमिति सदस्य बनाए गए –


गांधी परिवार का इन पर कितना भरोसा है इसका अंदाजा इसी बात से ही लगाया जा सकता है कि सितम्बर 2020 में इन्हें एआईसीसी का महासचिव एवं कार्यसमिति का सदस्य बनाया गया है। पहले उडीसा का प्रभार सौंपा गया और वर्तमान में ये असम के राज्य प्रभारी की भूमिका निभा रहे हैं।

केन्द्रीय नेतृत्व एवं राजस्थान सरकार के बीच सेतू का कार्य –


वर्ष 2018 में राजस्थान मंे कांग्रेस पार्टी ने सरकार तो बनायी लेकिन सीएम पद की दावेदारी को लेकर अशोक गहलोत एवं सचिन पायलेट में खींचातानी देखने को मिली थी। उस समय पार्टी के शीर्ष केन्द्रीय नेतृत्व एवं गहलोत-पायलेट के बीच इन्होंने सेतू का काम किया। पायलेट को मनाने में इनकी बड़ी भूमिका रही। वर्तमान में भी सरकार के असंतुष्टों को मनाने में इनके द्वारा अहम भूमिका निभाई जा रही है।

लोप्रोफाइल रहकर काम करने वाला व्यक्तित्व –

भंवर जितेन्द्र सिंह लोप्रोफाइल रहकर काम करने वाले व्यक्ति माने जाने हैं। जितना संभव हो किसी भी तरीके के विवाद से बचने की कोशिश करते हैं एवं लगातार अपने क्षेत्रवासियों के काम पर ध्यान लगाते हैं। इनके सभी लोगों के साथ मधुर संबंध हैं।

पार्टी आलाकमान का भरोसा इन्हें राज्यसभा ला सकता है –

राजस्थान में वर्ष 2020 में हुए राज्यसभा चुनावों में इनका नाम भी संभावित उम्मीदवारों में माना गया था लेकिन उस समय यह संभव नहीं हो पाया था। वर्ष 2022 में राजस्थान की चार राज्यसभा सीटे रिक्त होंगी तब गांधी परिवार का भरोसा इन्हें राज्यसभा ला सकता है।

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