महाराणा प्रताप : स्वाभिमान के प्रतीक और देश के प्रताप

देशभर में इस साल महाराणा प्रताप की जंयती आज यानी 13 जून को मनाई जा रही है। महाराणा प्रताप का जन्म सोलहवीं शताब्दी में कुम्भलगढ़ दुर्ग, मेवाड़ ; वर्तमान में कुम्भलगढ़ दुर्ग, जिला राजसमंद, राजस्थान में महाराणा उदयसिंह एवं मातारानी जयवन्ताबाई के घर में हुआ था। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार उनका जन्म 9 मई, 1540 को कुंभलगढ़ में हुआ था। इस दिन ज्येष्ठ मास की तृतीया तिथि थी, इसलिए हिंदी पंचांग के अनुसार महाराणा प्रताप जयंती 13 जून को मनाई जा रही है। बता दें कि यह महाराणा प्रताप की 481 वीं जयंती है।

महाराणा प्रताप के शासनकाल में सबसे अहम बात यह है कि दिल्ली की बादशाहत लिए बैठा अकबर बिना युद्व के महाराणा प्रताप को अपने अधीन करना चाहता था। महाराणा प्रताप-अकबर की शत्रुता तो थी लेकिन उनकी यह लड़ाई कोई व्यक्तिगत द्वेष का परिणाम नहीं होकर सिद्धांतों और मूल्यों की लड़ाई थी। विशाल साम्राज्य लिए बैठा अकबर अपनी मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए संघर्ष करने वाले महाराणा प्रताप को अपनी अधीनता स्वीकार करवाना चाहता था ; फिर चाहें मेवाड़ का शासक महाराणा प्रताप ही बने रहें, जैसा कि अकबर चाहता था लेकिन अपनी स्वाभिमान से जीने वाले महाराणा प्रताप को यह किसी भी सूरत में मंजूर नहीं था। अकबर का यह ख्वाब महाराणा प्रताप के जीते-जी कभी पूरा न हो सका। दोनों के बीच ऐतिहासिक हल्दीघाटी का युद्ध लड़ा गया। इस युद्ध में मेवाड़ की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप ने किया था। भील सेना के सरदार राणा पूंजा थे। इस युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से लड़ने वाले एकमात्र मुस्लिम सरदार हकीम खां सूरी थे। मुगल सेना का नेतृत्व आमेर के राजा मानसिंह तथा आसफ खां ने किया था। इतिहासकार मानते हैं कि इस युद्ध में कोई विजय नहीं हुआ था। आमने-सामने लडे़ गये इस युद्ध में महाराणा प्रताप के नेतृत्व उनकी मुट्ठीभर सेना ने अकबर की सेना का भारी नुकसान किया था। मातृभूमि का यह सपूत अपने पूरे जीवन अकबर की सेना से लड़ाई लड़ता रहा। महल छोड़कर जंगलों की शरण ली हो चाहे वहां घास की रोटियां खानी पड़ी हो लेकिन देशभक्त महाराणा प्रताप ने कभी अपनी आन-बान-शान पर आंच नहीं आने दी।

एक सच्चे शूरवीर, देशभक्त, स्वाभिमानी योद्वा महाराणा प्रताप मातृभूमि की रक्षा करते हुए देश के प्रताप के रूप में सदैव के लिए अमर हो गये।

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