मातृभूमि के लिए सरफरोशी की तमन्ना दिल में रखने वाले क्रांतिवीर पण्ड़ित रामप्रसाद बिस्मिल जो देश के हर दिल में हैं

देश की आजादी के महान क्रांतिवीर काकोरी कांड के महानायक राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को उन्होंने उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था। काकोरी कांड के मामले में भारत मां के इस लाड़ले सपूत को 19 दिसंबर 1927 को अंग्रेजी हुकूमत द्वारा गोरखपुर की जेल में फांसी पर चढ़ा दिया गया था। पण्ड़ित रामप्रसाद बिस्मिल महान क्रांतिकारी, कवि, शायर, साहित्यकार थे।

सरफरोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में हैं!
देखना है जोर कितना, बाजु-ए-कातिल में है?

कवि और शायर राम प्रसाद बिस्मिल की ये पंक्तियाँ बतातीं हैं कि उनके दिल में देश के लिए अंग्रेजों के प्रति कितनी आग थी.

काकोरी-काण्ड जो आजादी के इन दीवानों को फांसी के तख्त तक ले गया
देश की आजादी के लिए संसाधन जुटाने हेतु इन क्रांतिवारों को धन की जरूरत थी। देश लूट रहें अंग्रेजों के सरकारी खजाना को लूटने के इरादे से शाहजहाँपुर में इनके घर पर 7 अगस्त 1925 को हुई एक इमर्जेन्सी मीटिंग में हुए निर्णय के अनुसार 9 अगस्त 1925 को शाहजहाँपुर रेलवे स्टेशन से बिस्मिल के नेतृत्व में कुल 10 लोग, जिनमें राजेन्द्र लाहिड़ी, अशफाक उल्ला खाँ,चन्द्रशेखर आजाद, मन्मथनाथ गुप्त, शचीन्द्रनाथ बख्शी, मुकुन्दी लाल, केशव चक्रवर्ती (छद्मनाम), मुरारी शर्मा (छद्मनाम), तथा बनवारी लाल,8 डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर रेलगाड़ी में सवार हुए।

सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर जैसे ही लखनऊ से पहले काकोरी रेलवे स्टेशन पर रुक कर आगे बढ़ी, क्रान्तिकारियों ने चेन खींचकर उसे रोक लिया और सरकारी खजाने का बक्सा नीचे गिरा दिया। बक्से को खोलने की कोशिश की गयी लेकिन वह नहीं खुला तो हथौड़े से बक्सा खोला गया और खजाना लूट लिया गया लेकिन जल्दी के कारण चाँदी के सिक्कों व नोटों से भरे चमड़े के कुछ थैले वहीँ छूट गये।

ब्रिटिश हुकूमत ने क्रांतिवीरों के इस कार्य को काफी गंभीरता से लिया और सी आई डी इंस्पेक्टर आर ए हार्टन के नेतृत्व में स्काटलैण्ड की सबसे तेज तर्रार पुलिस को इसकी जाँच का काम सौंप दिया.

6 अप्रैल 1927 को विशेष सेशन जज ए0 हैमिल्टन ने 115 पृष्ठ के निर्णय में प्रत्येक क्रान्तिकारी पर गंभीर आरोप लगाये और डकैती को ब्रिटिश साम्राज्य को उखाड़ फेंकने की एक सोची समझी साजिश बताया था.

पण्ड़ित राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में फाँसी


बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा का आखिरी अध्याय (अन्तिम समय की बातें) 16 दिसम्बर 1927 को पूरा किया था. उन्होंने 18 दिसम्बर 1927 को माता-पिता से अन्तिम मुलाकात की और सोमवार 19 दिसम्बर 1927 को प्रातकाल 6 बजकर 30 मिनट पर गोरखपुर की जिला जेल में उन्हें फाँसी दे दी गयी थी. उनकी अंतिम यात्रा में लगभग 1.5 लाख लोगों ने हिस्सा लिया था.

इस प्रकार भारत माँ की सेवा में सरफरोशी की तमन्ना रखने वाला भारत मां का यह वीर सपूत भारत को आजादी दिलाने के लिए ख़ुशी ख़ुशी फांसी के फंदे पर चढ़ गया था। ऐसे वीर सपूत को उनकी जयंती पर सभी भारतवासियों की ओर से शत-शत नमन!

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