कहते हैं कि सियासत को सवाल पसंद नहीं होते उसे तो सहाबत भी वही पसंद होती है जो उसकी सेहत को खुराक दे। लेकिन कुछ शख्सियतें ऐसी भी होती हैं जिनके इरादों में न हुकूमत से हाथ मिलाना होता है न मन में उसका सहम। वो हर उस कलाई को मरोड़ देते हैं जो खुद को आम से अलग खास समझती हो। क्यंूकि वो बखूबी जानते हैं कि तख्त पर बैठने वालों को उन्हीं ने बिठाया है और ये भी जानते हैं कि उन्हें वो ही करने देना है जिसके लिए उन्हें बिठाया गया है। आज एक ऐसी ही निर्भीक शख्सियत के बारें में हम बात कर रहंे हैं जिनका नाम है अधिवक्ता प्रशांत पटेल उमराव। सुप्रीम कोर्ट के इस अधिवक्ता के काम भले ही हुक्मरानों को रास नहीं आते हों लेकिन आमजन के लिए इनके काम न सिर्फ राहत भरे होते हैं बल्कि किसी सौगात से कम नहीं होते।
कौन हैं अधिवक्ता प्रशांत पटेल उमराव –
अधिवक्ता प्रशांत पटेल उमराव का जन्म 05 जुलाई 1987 को यूपी के फतेहपुर स्थित जहानाबाद कस्बे में हुआ है। इनके पिताजी का नाम खेमराज उमराव है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कंप्यूटर एप्लीकेशन में ग्रेजुएशन करने के बाद इन्होंने उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय से एलएलबी और एलएलएम की डिग्री हासिल की है। वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट एवं दिल्ली हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं। ये गैर राजनीतिक संगठन मिशन वन्दे मातरम फाउंडेशन के संरक्षक हैं, जिसके तहत देश के लिए शहीद हुए सपूतों की याद में कार्यक्रम करते रहते हैं। प्रख्यात अधिवक्ता के साथ-साथ एक बेहतरीन लेखक एवं सामाजिक कार्यकर्त्ता भी इनकी खास पहचान है।
वो एक याचिका जिस पर आप पार्टी के 20 विधायक हुए थे अयोग्य घोषित –
भले ही आज आम आदमी पार्टी दिल्ली के सिंहासन पर लगातार तीसरी बार काबिज हो लेकिन उस बात को कतई नहीं भूला जा सकता है जब उसके 20 विधायकों को एक साथ अयोग्य घोषित कर दिया गया था।
दरअसल आप पार्टी की दिल्ली सरकार ने मार्च 2015 में 21 विधायकों को संसदीय सचिव के पद पर नियुक्त किया था। इसे लाभ का पद बताते हुए सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता प्रशांत पटेल उमराव ने राष्ट्रपति के पास शिकायत की। अधिवक्ता ने इन विधायकों की सदस्यता समाप्त करने की मांग की। हांलाकि बाद में विधायक जनरैल सिंह के पंजाब से इलेक्शन लड़ने को लेकर दिए गये इस्तीफे के कारण विधायकों की संख्या 20 रह गई थी। राष्ट्रपति द्वारा यह मामला चुनाव आयोग में भेजा गया था जहां उन्होंने मार्च 2016 में इन विधायकों को नोटिस भेजकर इस मामले की सुनवाई शुरू की गई।
हालांकि इस बीच दिल्ली सरकार द्वारा संसदीय सचिव के पद को लाभ के पद से बाहर निकालने के लिए दिल्ली असंेबली रिमूवल ऑफ डिस्क्वॉलिफिकेशन एक्ट 1997 में संशोधन करने का भी प्रयास किया गया था लेकिन राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिलने से इसमें सफलता नहीं मिली। इसके बाद चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को अयोग्य घोषित करने की सिफारिश की जिस पर 20 जनवरी 2018 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा विधायकों को अयोग्य घोषित करने की चुनाव आयोग की सिफारिश को मंजूरी प्रदान की गई
पूर्व की नियुक्तियां भी थी अवैध –
अधिवक्ता प्रशांत पटेल उमराव कहते है कि इससे पूर्व कि भाजपा हो या कांग्रेस सभी सरकारों में ऐसी नियुक्तियां होती रही हैं जो कि असंवैधानिक थी। लेकिन उन पर किसी ने आपत्ति दर्ज नहीं की थी
तो इस तरह सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता प्रशांत पटेल उमराव की इस याचिका ने सियासत को कानून का आईना दिखाया और बेलगाम चली आ रही सियाहत पर लगाम लगाया।