इनकी रग-रग में इंकलाब तो लबों पर रहता है हिंद की जय
दुनिया का सबसे बडा लोकतांत्रिक देश भारत 73 वें गणतत्र दिवस को आजादी के अमृत महोत्सव के साथ आज पूरे हर्षोंउल्लास के साथ मना रहा है। मनाना भी चाहिए सभी को इस पावन दिवस की शुभकामनाएं । लेकिन आज हम एक ऐसी शख्सियत के बारे में जन को बताना चाहेंगे जिनको गण्तंत्र के रखवालों ने तो खलनायक बनाना चाहा था लेकिन वे उभरे हैं जन गण मन के अधिनायक बनकर । ये शख्सियत हैं राजस्थान उच्च न्यायालय के अधिवक्ता श्री गोवर्धन सिंह जी।
अब सुने कहानी उस तंत्र की, जिसने बनाया इन्हें इंकलाबी
खुद अधिवक्ता गोवर्धन सिंह जी की जुबानी
फरारी का एक दिन 6 सितम्बर 2010
भ्रष्टाचारियों के खिलाफ अभियान बनाकर कार्रवाई करने से फरवरी 2010 में आदरणीय मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत के इशारे पर अनगिनत झूठे मुक़दमे मेरे खिलाफ दर्ज किए गए थे और मैं स्वयं को निर्दोष साबित करने के लिए फरार चल रहा था…
फरारी काटते काटते लगभग सात महीने हो चुके थे….बहुत सारे मुकदमे…..हिष्ट्रीशीटर बन चुका था…..2000 के ईनाम के साथ राजस्थान के हर पुलिस थाने में मेरा फोटो भी लग चुका था…..मेरा एक साथी नकली नोट छापने के झूठे मामले में 29 दिन की जेल काटकर जमानत ले चुका था…..विधानसभा में श्री राजेन्द्र राठोड़ का शून्यकाल में प्रश्न उठाकर मेरे लिए प्रयास करना श्री देवी सिंह भाटी की वजह से विफल हो चुका था……
कई मुकदमों में तो तत्कालीन एसपी हबीब खान गौरान मेरे खिलाफ न्यायालय से वारंट भी ले चुका था(जो बाद में श्री अशोक गहलोत की कृपा से RPSC का चेयरमैन भी रहा और जो प्रिंटिंग प्रेस से पेपर चोरी करने सहित भ्रष्टाचार के अनेक मामलों में आरोपी आज भी है)……अब तक मैं उद्घोषित अपराधी बन चुका था……ऐसे अपराधी को कोई सिविलियन भी गिरफ्तार कर सकता है…..हुलिया बदल बदल कर भागते भागते हम सभी परेशान हो चुके थे लेकिन उपाय नहीं था…..फिर भी प्रयास लगातार जारी था….
फ्रेंच कट दाढ़ी रखी थी मैंने उस वक्त, ताकि मुझे कोई पहचान नहीं सके…..मन में टीस थी तो केवल इतनी…. कहाँ गया मेरा बीकानेर……और उस बीकानेर के ईमानदार नागरिक(मालिक)……छद्म राष्ट्रवाद की बातें करने वाले वो लोग…..कुछ लोगों को छोड़कर बाकी सब लोग क्यों केवल तमाशा देख रहे थे…..बीकानेर का मीडिया, नेता, संगठनों के लोग, छपास रोगी, पुलिस के कुछ जमीर रखने वाले लोग और आम जन, क्यों चुपचाप तमाशा देख रहे थे…..
चलो यह सब सोचकर रुकना तो था नहीं……अब वापस आते हैं फरारी के उसी दिन 6 सितम्बर 2010 पर……
मेरे खिलाफ दर्ज सभी मुकदमों में सबसे गंभीर मुकदमा जो था उसे ख़त्म कराने के लिए मैंने मार्च 2010 में एक याचिका उच्च न्यायालय, जोधपुर में लगाई थी…..जिसमें आईपीसी की धाराएँ 384, 415, 416, 417, 419, 504, 506, 292, 353, 489डी, 120बी और महिला अशिष्ट निरूपण अधिनियम भी था…….ये धाराएँ धोखाधड़ी, ब्लेकमेलिंग, राजकार्य में बाधा, महिला अशिष्टता, मानहानि, षडयंत्र, नकली नोट वगैरहा आरोपों से सम्बन्धित होती है…..इसी मुकदमे में आरोप था कि मेरे पास सेना से जुड़े नक़्शे भी मिले थे और मेरा सम्बन्ध पकिस्तान के आईएसआई से भी हो सकता है……मेरे साथी ने इसी मामले में 29 दिन की जेल काटी थी…
अब तक मार्च 2010 के बाद से हाईकोर्ट में हमको केवल मिला था….. तो वो थी केवल तारीख……6 सितम्बर 2010 को तारीख पड़ गई लेकिन वकीलों की कई महीनों से हड़ताल चल रही थी…..हड़ताल भी हमारी फरारी में ही होनी थी….किस्मत हमारी!!!!!!……
पत्नी को बहस के लिए तैयार किया…..इस मुकदमे में मेरी खुद की तो बहुत जबर्दस्त तैयारी थी क्योंकि मैं तो भुगतभोगी था…..फ्रेंचकट दाढ़ी मैंने भी कटवाकर निरीह प्राणी बनने का प्रयास किया क्योंकि बहस करने का मौका मुझे भी मिलने की संभावना थी…..अच्छा सा पेंट-शर्ट, शर्ट अंदर कर लगाया था बेल्ट, अच्छे से जुते जुराब….
किसी अज्ञात स्थान पर मैं मेरी पत्नी को बहस के लिए, तैयारी करवा रहा था…..वो हिचक रही थी कि मुझसे कोई गलती हो जाएगी…..मैंने समझाया- “कुछ नहीं से तो अच्छा ही होगा…..”
हम दोनों अलग-अलग गुप्त मोबाइल के साथ उच्च न्यायालय में पहुंचे……वहाँ बीकानेर पुलिस की टीम को देखा जो मेरे लिए ही आई थी जो कोर्ट के अंदर तो नहीं थी लेकिन उनकी निगाहें बार-बार न्यायालय परिसर में मुझे ही खोज रही थी…..IPS हबीब खान ने समझाकर भेजा होगा कि वो लड़का दुस्साहसी है इसलिए तारीख पर आ सकता है …..एक बार तो लगा, पकड़े जा सकते हैं……पकड़े गये तो फिर सारी जिन्दगी जेल में ही काटनी पड़ेगी……”क्योंकि न्यायपालिका में न्याय मिलने के हालातों से मैं भलीभांति वाकिफ था…..”
मैं कोर्ट के पास ही कहीं छुपकर बैठ गया था और इन्तजार करने लगा….मन ही मन सोचने लगा कि काश बहस करने का मौका मुझे मिल जाये……मेरे मुकदमे का कोर्ट में नम्बर आने ही वाला था, इतने में अचानक मेरी पत्नी का फोन आया और वो बोली “कोर्ट में कोई पुलिस वाला या सरकारी वकील नहीं है आप आ जाओ…..”
सुनते ही मैं कोर्ट की तरफ दौड़ा और सीधा पत्नी से फाइल लेकर बहस करने लगा और कोर्ट को बताया कि पुलिस “ब्लैक एण्ड व्हाईट प्रिन्टर” जब्त कर नकली नोट छापने का आरोप मुझ पर लगा रही है……अब मैं और केवल न्यायाधीश……बहस चलती रही चलती रही……फैसला सुनाया गया……मुकदमे पर पूरी तरह रोक लगाई जाती है और साथ में यह भी कहा गया कि अन्य जो मुकदमे हैं उनको भी ख़त्म कराने के लिए 482 सीआरपीसी के तहत याचिकाएं लगा दो……मेरी व मेरी पत्नी की आँखों से अश्रुधारा बह निकली…..रुक ही नहीं रही थी…..लेकिन ये ख़ुशी के आंसू थे……
मैं कोर्ट से तुरंत भाग गया क्योंकि मुकदमे तो बहुत सारे थे न………पत्नी ने बाद में बताया कि आपके निकलते ही पुलिस आ गई थी और अपना सर पीट रही थी…….”अरे वो गोवर्धन सिंह आया और निकल भी गया हमारा सबसे खतरनाक मामला स्टे भी करा गया……”
इस मुकदमे का अंत क्या हुआ……..यह भी तो जानना चाहिए न…….पुलिस ने अंतिम रूप से इस मामले को झूठा माना और इस मुकदमे में नकारात्मक एफआर न्यायालय में पेश की……मेरा साथी जो इसी मामले में 29 दिन जेल में रहा उसको रिहाई दिलाई गई…….
ये मुकदमा दर्ज कराने वाला व्यक्ति कौन था यह जानना भी तो जरुरी है न…..वो था कुंदन “मल” बोहरा पारीक, वाणिज्यिक कर अधिकारी, रानी बाज़ार, बीकानेर…….और क्यों कराया….तो सुनो उसके खिलाफ वर्ष 2009 में, भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में मैंने एफआईआर संख्या 193/2009 दर्ज कराई थी जो आज तक न्यायालय में विचाराधीन है……
सेल टेक्स विभाग वाले कैसे होते हैं ये तो कोई भी व्यापारी बता सकता है और शायद यह भी बता सकता है कि ये अफसर करोड़पति होते हैं या अरबपति…..कहा जाता है कि एसपी को मेरा एनकाउंटर करने के लिए बड़ा रुपया देने वालों में ये भी शामिल था…
हाईकोर्ट के सुपरविजन के कारण समस्त मुकदमे झूठे पाए गए और राजस्थान सरकार ने लिखित में राजस्थान उच्च न्यायालय को कहा कि 100% मुकदमे झूठे होने के कारण सभी मामलों में नकारात्मक अंतिम रिपोर्ट न्यायालयों के समक्ष पेश कर दी गई है…
इस घटना के बाद मैं काला कोट पहनकर वकालत करने के लिए प्रेरित हुआ और आज राजस्थान उच्च न्यायालय, जयपुर में वकालत कर रहा हूँ, अनगिनत देशभक्तों को LL.B. करवा चुका हूँ…”हिन्द की जय” करने वाले लाखों लोग खड़े हो चुके हैं…
सम्पूर्ण धर्मयुद्ध में मेरे पास केवल 2 बड़ी ताक़त थी और वो थी “सच्चाई और ईमानदारी”
उस समय की बहुत सारी ऐसी अनेक घटनाएं हैं, जिन पर बहुत कुछ बताया जा सकता है जैसे-
1. विधानसभा में क्या-क्या हुआ…?
2. फरारी के लगभग 8 महीने कहाँ-कहाँ निकाले और अनगिनत अन्जान लोगों ने कैसे-कैसे मदद की…?
3. राजस्थान के सबसे बड़े वकील स्वर्गीय श्री महेश बोड़ा, श्री दौलत सिंह और श्री श्याम सुन्दर लदरेचा ने एक रूपया फीस लिए बिना पैरवी की और फरारी भी कटवाई…?
4. बीकानेर की तत्कालीन कलेक्टर ने मेरे पट्टेशुदा घर को तोड़ने के आदेश जारी करवा दिए जिस पर भी न्यायालय ने ही रोक लगाई थी…
5. फरारी में भगत सिंह को पढ़कर क्या-क्या ख़याल आए…?
6. दिल्ली, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश क्यों भागना पड़ा और कब-कब मैं गिरफ़्तारी से बाल-बाल बचा…
7. दोस्तों और परिवारजनों पर पुलिस ने क्या-क्या अन्याय किए…?
8. बीकानेर शहर के तत्कालीन विधायक स्वर्गीय श्री नन्दू महाराज ने 8 महीने में अनेक तरह से क्या-क्या मदद की थी…
9. RSS के स्वघोषित ईमानदार क्या-क्या बकवास करते थे…?
10. कुछ लोग जो कहते थे कि गोवर्धन सिंह का हम पर ऐसे अहसान हैं जो उतर ही नहीं सकते हैं, ऐसे कई लोग सबसे पहले मैदान छोड़कर भाग गए…
11. मेरे घर पर सैंकड़ों पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में मेरा दोस्त भँवर सिंह पुलिस से लड़ रहा था…
12. घर से नौकर, कार और सामान पुलिस ले गई…
13. हाईकोर्ट की रोक के बावजूद हबीब खान IPS ने हमारी गिरफ्तारी का प्रयास किया…
14. झूठे मुक़दमे दर्ज कराने वालों का इन 11 सालों में क्या हश्र हुआ…?
15. हबीब खान IPS RPSC में चेयरमैन रहते हुए खून के आँसू कब-कब रोया…?
16. मेरा घर तोड़ने का प्रयास करने वाली बीकानेर कलेक्टर श्रेया गुहा का एक बड़ा घपला कैसे पकड़ में आया…
17. इतना सबकुछ करके भी पुलिस एक सेकण्ड के लिए भी हिरासत में नहीं रख पाई…
18. और भी बहुत कुछ है जिस पर कई किताबें लिखी जा सकती हैं…
(The contents have been taken from Facebook)
अधिवक्ता गोवर्धन सिंह जी कहते है कि भारत गणराज्य के स्तंभों चाहे वह विधायिका हो या न्यायपालिका या फिर कार्यपालिका इनका मजबूर नहीं मजबूत होना जरूरी है यदि इनमें से कोई एक भी भरभराया तो लोकतंत्र के मंदिर को ध्वस्त होते देर नहीं लगेगीा आज अधिवक्ता गोवर्धन सिंह एक ऐसा ही नाम है जो अपने इंकलाबी कार्यो से सदैव लोकतंत्र के इन स्तंभों को सजग प्रहरी की तरह दुरस्त करने में लगे है । सच यह है कि इनकी रग-रग में इंकलाब है तो लबों पर हिंद की जय । बात चाहें विधायिका के कमजोर कानूनों की हो या फिर लचर न्यायपालिका की या फिर विधायिका के कानूनों को अमलीजामा पहनाने वाली कार्यपालिका की इन्होंने सदैव आमजन की पीढा को समझा और उठाया है ।
सूचना अधिकार से नागरिक क्रांति कर किये हैं बडो-बडो की नींदे हराम –
अधिवक्ता गोवर्धन सिंह सूचना अधिकार के हथियार को कुछ इस तरह से इस्तेमाल करते है कि बडे-बडे डकैतों की नींदे हराम हो रखी हुई है । इनकी नागरिक क्रांति को ही असर है कि हजारों-लाखों युवा इनके इस मिशन से प्रेरणा ले इनके साथ ही भ्रष्टतंत्र की चमडी उतारने लगे हैं । आरटीआई की नागरिक क्रांति की वजह से इन्हें कई बार धमकियां भी मिली हैं तो हमले भी हुए हैं लेकिन ये हैं कि न कभी डरे न कभी झुकें। ये हर उस नागरिक क्रांति के सिपाही के साथ कंधा से कंधा मिलाकर खडे रहें हैं जो इस मुहिम में लगा है । फिर चाहें ताजा मामला बाडमेर के आरटीआई कार्यकर्ता अमराराम जाट का हो या फिर पूर्व का कोई और कार्यकर्ता ।
इनको चाहने वालों का कारवां है बडा लंबा तो खौफजदा दुश्मन भी कम नहीं –
अधिवक्ता गोवर्धन सिंह एक ऐसा नाम है जिनको चाहने वालों का कारवां बडा लंबा है तो इनको डराने वाले बुझदिल दुश्मनों की भी कोई कमी नहीं है । स्वस्थ तंत्र को चाहने वाले इन्हें अपना योग्य साथी मानते हैं तो भ्रष्टों को डरने के लिए इनका नाम ही काफी है ।गण्तंत्र के मंदिर को कमजोर करने वाले किसी भी बदमाश को ये छोडते नहीं हैं ।
नागरिक क्रांति की ऐसी अलख जगाये हैं कि मुख्यमंत्री की जुबान पर भी नाम आता है इनका –
अधिवक्ता गोवर्धन सिंह ने नागरिक क्रांति की ऐसी अलख जगायी है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की जुबान पर इनका नाम सुना जा सकता है । हाल ही में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत यह कहते सुने गये है कि यह गोवर्धन सिंह बडा शरारती आदमी है यह खुद भी भडकता है और आसपास के अन्य लोगों को भी भडकाता है ।
आदर्श वकालात के चलते उच्च न्यायालय ने खारिज किया इनके खिलाफ दायर मुकदमा –
हाल ही के दिनों में एक गरीब एवं पीडित पक्षकार के दर्द को साझा करते हुए इन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया कि न्यायालय में मिलती हैं तारीख पर तारीख तो इसे न्यायालय की अवमानना मानते हुए एक जज साहिबा ने इनके खिलाफ आपराधिक अवमानना का मुकदमा दर्ज करवाया जिसे उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया ।
कोई धमकी इनके हौंसलों की उडान को कमजोर न कर सकी –
अधिवक्ता गोवर्धन सिंह के साहसिक कार्यों की वजह से इन पर पूर्व में भी हमले हो चुके हैं तो हाल ही दिनों में इन्हें जान से मारने की धमकी मिली है । लेकिन इंकलाबी एवं हिंद की जय करने वाले अधिवक्ता गोवर्धन सिंह के साथ नागरिक क्रांति की ऐसी मशाल है कि सब कचरे को इनके सत्य की यह लौ खाक कर देगीा बुझदिलों से मिलने वाली धमकियों पर अधिवक्ता का कहना है कि –
घुटनों के बल जीने की बजाय,
मैं खडा होकर मरना पंसद करूंगाँ
हर जगह से दुत्कारा इनके चैम्बर में दुलार के साथ पाता है न्याय –
अधिवक्ता गोवर्धन सिंह भले ही हम सभी की तरह इंसान हैं लेकिन ये हर उस शख्स के लिए फरिश्ते हैं जो इनके यहां अपनी पीडा लेकर पहुंचता है । हर जगह से दुत्कारा या ठगा गया पीडित पक्षकार जब इनके चैम्बर पहुंचता है तो न सिर्फ दुलार पाता है बल्कि न्याय भी अपने दामन में लेकर जाता है । हर गरीब बेबस की पीडा इन्होंने बिना किसी फीस के ली है एवं उन्हें न्याय दिलवाया है ऐसी सैंकडों मिसालें देखी जा सकती हैं ।
घायल तो यहां हर परिंदा है मगर फिर से उड सका वही जिंदा है – अधिवक्ता गोवर्धन सिंह