देश-दुनिया में बहुत सारे ऐसे नाम होते है जो कुछ ऐसा कर रहे होते हैं जिनके बदलावों की छाप पूरे समाज पर पडती है। मुख्य बात यह है कि इनका यह किया जाना अपने स्वयं के लिए नहीं होता है अपितु समाज-देश-दुनिया के लिए होता है। इनके इन भागीरथी कार्यों में मुश्किलें भी कम नहीं होती हैं लेकिन बदलाव की धुन के पक्के ये नायक न तो रूकते हैं और न ही भटकते हैं बल्कि अपने नेकदिल इरादों को साकार करने के अपने प्रयासों को और गतिमान करते हैं। मानवता के धनी ये कलम के नायक हर लम्हा हर वरके पर न्याय के शब्द लिखते हैं और उनमें खुशियों के रंग भरते हैं। ऐसी ही एक शख्सियत हैं आईएएस डॉ जितेन्द्र कुमार सोनी। आईएएस डॉ जितेन्द्र सोनी वर्ष 2010 बैच के आईएएस हैं एवं वर्तमान में राजस्थान के अलवर जिला कलेक्टर के रूप में पदस्थ हैं। आज आईएएस डॉ जितेन्द्र कुमार सोनी का जन्मदिवस है इस शुभ दिन इन्हें बहुत-बहुत हार्दिक बधाईयां एवं शुभकामनाएँ। अब हम जानते हैं कि क्यूं इनका यह स्वर्णिम सफर आज गर्व करने के लिए है। ये लाखों-करोडों युवाओं के लिए जिंदगी में ख्वाब बुनने और उन्हें साकार करने की प्रेरणा तो है ही साथ ही उन लोगो के लिए भी एक संदेश हैं जो समाज एवं देश को अपनी क्षमतानुसार योगदान कर एक नई रोशन राह पर ले जा सकते हैं।
अन्नदाता के घर में जन्मा हीरा
मोहन लाल सोनी। राजस्थान के हनुमानगढ जिले के एक छोटे से गांव धन्नासर के किसान। हाँ, वही किसान जो अन्नदाता बनकर पेट भरता है हम जैसे हर इंसान का। मोहनलाल सोनी के खलियान में अनाज के दाने उगते हैं वह कोई हीरे तो निकालने से रहते। लेकिन उनके घर में जरूर हीरा आना था और वह आया भी। 29 नवबंर 1981 इस हकीकत की दिनांक है। किसान मोहन लाल सोनी एवं गृहणी पत्नी के यहां एक बच्चे का जन्म हुआ। जिन्हें आज हम आईएएस डॉ जितेन्द्र कुमार सोनी के नाम से जानते है। स्कूल जाने की उम्र हुई तो पिता ने सरकारी स्कूल में दाखिला करवा दिया। किसान का यह बेटा जब कभी सरकारी दौरे पर कलेक्टर की गाडी आती तो उसके पीछे दौड लगाता-लगाता खुद ही कलेक्टर बनने का ख्वाब पाल बैठा। अंदाजा तो रहा होगा इन्हें भी अपने पिता की किसानी का और अक्षर ज्ञान से वंचित माँ का। लेकिन कौन अभाव था जो इन धुन के पक्के बालक को रोकने का दुस्साहस करता। क्यूंकि इनके सपनों में हौंसला था। वहीं हौंसला जो बडी-बडी चट्टानों को चकनाचूर कर देता है। हाँ, वहीं हौंसला जो तूफानों का रूख मोड देता है। किसान पिता ने कलेक्टर की गाडी के पीछे दौडने वाले अपने बेटे को बस यही कहा कि तुम्हें बनना है तो बस कलेक्टर ही। पिता की प्रेरणा के ये शब्द इनकी ताकत बन गये।
सरकारी स्कूल, हिंदी माध्यम, दर्जनों उच्च शिक्षा की डिग्रियां एवं पहले प्रयास में बने आईएएस
सरकारी स्कूल में हिंदी माध्यम से पढने वाले डॉ जितेन्द्र कुमार सोनी ने एमए (फिलॉसफी, पॉलिटिकल साइंस, पब्लिक पॉलिसी) स्लेट (फिलॉसफी), नेट-जेआरएफ (पॉलिटिकल साइंस) एवं पीएचडी जैसी दर्जनों उच्च शिक्षा की डिग्रियां प्राप्त की हैं। अपने पहले ही प्रयास में आईएएस बन गये। ये राजस्थान कैडर के वर्ष 2010 बैच के आईएएस है। इससे पूर्व इनका चयन राजस्थान प्रशासनिक सेवा में भी हो चुका था।
कलेक्टर रहते “चरण पादुकाएं” अपने हाथों से पहनाई
दिन 26 जनवरी साल 2016। जालौर कलेक्टर आईएएस डॉ जितेन्द्र कुमार सोनी। सरकारी स्कूल में पढने वाले 25,000 बच्चों ने अपने नंगें पैरांे में चप्पलें पहनी। ये वो ही बच्चे थे जो अपनी मर्जी से खून जमा देने वाली उन सर्द रातों में नंगें पैर नहीं थे। बस यूं समझिए की मजबूरी थी। अभाव था पैसों का। शिक्षा जरूरी थी तो नंगे पांव भी स्कूल आते थे। एक दिन ऐसे ही सर्द दिनों में नंगें पैर स्कूल जाते बच्चों को देखकर कभी कलेक्टर की गाडी के पीछे दौडने वाले आईएएस डॉ जितेन्द्र सोनी ने अपनी कलेक्टरी की गाडी के दौडते पहियों कोे रूकवा दिया और सीधे बच्चों से जा मिले। जब कारण पता चला कि बच्चे पैसों के अभावों के कारण नंगें पैर स्कूल जा रहे हैं तो अपनी जेब के पैसे से उन बच्चों को हाथांे-हाथ चप्पलें खरीदकर पहनाई वो भी अपने हाथों से और नाम दिया चरण पादुका। बस फिर क्या था? एक नई पहल शुरू हो चुकी थी। जिले भर के ऐसे बच्चों को चिन्हित करने के निर्देश दिये गये जो नंगें पैर स्कूल आने को मजबूर थे। भामाशाओं से भी ऐसे बच्चों की मदद की अपील की गई। अपने कलेक्टर की ईमानदारी एवं समाज के लिए करने की भावना को देखते हुए भामाशाहों ने भी अपना भरपूर सहयोग दिया जो आज भी जारी है एवं लाखों बच्चों को चरण पादुकाएं पहनाई गई। इनका यह अभियान आज भी जारी है। जालौर जिले में वर्ष 2016 में आई बाढ के दौरान स्वयं अपनी जान जोखिम में डाल लोगों की जान बचाने के लिए इन्होंेने साहसिक कार्य किया जिसके लिए इन्हें उत्तम जीवन रक्षा पदक से नवाजा गया।
जिंदगी को सांसे दे रहा है “रक्त फाउण्डेशन”
यूं तो जिंदगी हो या मौत इंसान के हाथ में कुछ नहीं है लेकिन टूटती सांसों को कोई सहारा दे तो वह फरिश्ता नही ंतो क्या है? साल 2018 जिला था झालावाड और कलेक्टर आईएएस डॉ जितेन्द्र कुमार सोनी। वहीं जज्बा कुछ नया करने का उनके लिए जिनके लिए जरूरी हो। हाँ, उनके ही लिए जिनके अपनी जिंदगी की टूटती सांसों के दर्द तो हैं लेकिन उनकी संजीवनी का कोई प्लेटफॉर्म नहीं। सीधा कहें तो वो लोग जो रक्त की कमी के कारण अस्पताल पहुंचने के बाद भी दम तोड देते हैं। ब्लड गु्रप ओ नेगेटिव। यह एक ऐसा गु्रप है जो बहुत लोगों में से एक का होता है। ऐसे में ब्लड गु्रप मैच नहीं करने के कारण जो लोग अपना रक्तदान कर किसी जिंदगी को बचाना चाहे तो भी नहीं कर सकते हैं क्यूंकि इसके लिए ब्लैड गु्रप का मैच होना जरूरी है। लाखों जिंदगियां बचाने के लिए कलेक्टर डॉ जितेन्द्र सोनी ने एक नई मुहिम शुरू की। वाट्सअप पर इन्होंने दुर्लभ ब्लड गु्रप ओ नेगेटिव के लोगों का एक गु्रप बनाया जिससे कि जरूरत के समय इसकी उपलब्धता सुनिश्चित कर किन्हीं टूटती सांसों को बचाया जा सकें। यह पहल अब रक्तकोष एप्लिकेशन बनकर चौबीसों घंटे लोगों की जीवनदायिनी बन रही है।
“स्कूल ऑन व्हील्स” झुग्गियों में पसरे अंधेरे को मिटाती एक आखर जोत
आईएएस डॉ जितेन्द्र सोनी ने झुग्गियों में पसरे अंधेरे को मिटाने के लिए एक आखर जोत जलाई जिसको नाम दिया गया स्कूल ऑन व्हील्स। वही स्कूल ऑन व्हील्स जिसे हम विद्यावाहिनी के नाम से जानते हैं। इस नवाचार का मकसद था तो बस यहीं कि कोई भी अभाव किसी भी झुग्गी के बच्चें की जिंदगी में अक्षरज्ञान के अंधेरे का कारण नहीं बने। हर उस झुग्गी की चौखट पर अक्षरज्ञान के उजाले की रोशन किरण पहुंचे जहां अभावों के कारण अक्षरज्ञान का अंधेरा पसरा पडा है। इस नवाचार के तहत बसों में प्रोजेक्टर लगवाए गये जिसमें वीडियों एवं ऑडियों दोनों ही शामिल रहे। झुग्गियों में रहने वाले बच्चों को शिक्षा से जोडनें वाले इस सामाजिक जागरूकता वाले नवाचार ने समाज की एक नई दिशा तय की। कलेक्टर आईएएस डॉ जितेन्द्र सोनी के इस नवाचार से जिले के अन्य अधिकारियों के साथ बहुत से युवा भी जुडे एवं झुग्गियों में रहने वाले बच्चों को उनके घर-घर जाकर भी पढाने लगे।
“रास्ता खोलों” अभियान ने किसानों के दिल भी मिलाये और दिन भी संवारें
आईएएस डॉ जितेन्द्र कुमार सोनी ने नागौर कलेक्टर रहते पाया कि कार्यालय में आने वाली शिकायतों में राजस्व संबंधी शिकायतें ज्यादा हैं। किसान भाईयों की वो छोटी-छोटी लडाईयां जिन्हें आपसी बातचीत से सुलझाया जा सकता है। इन्होंने रास्ता खोलों अभियान की शुरूआत की जिसमें राजस्व अधिकारी मौके पर जाते और किसान भाईयों ने आपसी छोटी-छोटी लडाईयों में जो एक-दूसरे के खेतों पर जाने का रास्ता बंद किया हुआ था उनको आपसी समझाइश से खुलवाना शुरू किया। यह नवाचार बहुत सफल हुआ। किसानों का आपसी विवाद हल होने से उनके दिल तो मिले ही साथ ही रास्ते बंद से जो फसली आमदनी का नुकसान उन्हें हो रहा था वह अब बंद हो गया। इन खोलें जाने वाले रास्तों का नामकरण गांव की ही उन बहन-बेटियों के नाम पर किया गया जिन्होंने गांव-समाज में विशिष्ठ काम किये हों।
“उजास योजना” से जगमग अलवर की सरकारी पाठशालाएं
अलवर कलेक्टर आईएएस डॉ जितेन्द्र कुमार सोनी अपनी कार्यकुशलता एवं नवाचारों के कारण कुछ ही समय में अलवर की अवाम के चहेते बन गए हैं। यहां इन्होंने अपने पूर्व के सभी नवाचारों को तो चला ही रखा है एक नया नवाचार जो शुरू किया गया है उसका नाम है उजास। उजास अभियान भामाशाहों के सहयोग से उन सरकारी विद्यालयों के लिए बिजली की व्यवस्था करने के लिए शुरू किया गया है जहां बिजली की व्यवस्था नहीं है। इस अभियान में अब तक सैकडों विद्यालयोें में बिजली कनेक्शन की व्यवस्था की जा चुकी है।
लेखक, कवि के साथ ही वन्यजीव एवं प्रकृति प्रेमी
आईएएस डॉ जितेन्द्र कुमार सोनी सरल, सुलभ एवं सौम्य व्यक्तित्व के धनी तो हैं ही साथ ही एक अच्छे लेखक, कवि होने के साथ-साथ वन्यजीव एवं प्रकृति प्रेमी एवं श्रेष्ठ फोटोग्राफर भी हैं। उम्मीदों के चिराग, रणखार, यादावरी जैसी कई चर्चित रचनाएं इनके द्वारा लिखी गई हैं। राजस्थान शिक्षा विभाग के काव्य संग्रह शब्दों की सीप का सम्पादन भी इनके द्वारा किया गया है। राजस्थानी काव्य संग्रह रणखार के लिए इन्हें साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। राज्य एवं केंद्र सरकार द्वारा इन्हें इनकी प्रशासनिक कौशलता एवं कार्यों के लिए ई-गवरनेंस अवॉर्ड, सीएसआई निहिलेंट ई-गवरनेंस अवॉर्ड, दिव्यांगजनों के लिए उल्लेखनीय कार्यों के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार के साथ अनेको बार सम्मानित किया जा चुका हैै।