कारसेवक रहे गुरुचरण सिंह गिल को मिला था रामलला का यजमान बनने का सौभाग्य, अब राम मंदिर की कहानी बताते हुए इस बात पर हो गए भावुक

कारसेवक रहे गुरुचरण सिंह गिल को मिला रामलला का यजमान बनने का सौभाग्य, अब राम मंदिर की कहानी बताते हुए इस बात पर हो गए भावुक

Gurcharan Singh Gill Interview: अयोध्या के भव्य राम मंदिर में 22 जनवरी को रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हो गई. पूरे देश ने इस कार्यक्रम को एक उत्सव की तरह मनाया. प्राण प्रतिष्ठा समारोह में देशभर से 15 जोड़े यजमान बनाए गए. इसमें यजमान बनने का सौभाग्य राम मंदिर आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सीनियर एडवोट गुरुचरण सिंह गिल को भी मिला. वह रामलला प्राण प्रतिष्ठा समारोह में अपनी पत्नी के साथ बतौर यजमान शामिल हुए.

दरअसल, अयोध्या में 22 जनवरी को राममंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में 15 जोड़े यजमान के तौर पर शामिल हुए थे. उसमें भरतपुर के बयाना के रहने वाले गुरुचरण सिंह गिल को भी उनकी पत्नी के साथ आमंत्रण दिया गया था. गिल राष्ट्रीय सिख संगत के अध्यक्ष हैं और राम मंदिर आंदोलन से जुडे़ रहे हैं. कारसेवक बनकर उन्होंने राम मंदिर आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. राम मंदिर आंदोलन से जुड़े उनके अनुभव को जानने के लिए ‘द कलंदर पोस्ट’ के मुख्य संपादक विजय कलंदर ने उनसे खास बातचीत की जिसमें वह कारसेवकों को याद करते हुए भावुक हो गए.

राजस्थान हाईकोर्ट के दिग्गज वकील, वसुंधरा राज में 2 बार रह चुके हैं AAG

गुरुचरण सिंह गिल की गिनती राजस्थान हाईकोर्ट के दिग्गज वकीलों में की जाती है. उन्हें संवैधानिक, सिविल और आपराधिक मामलों में महारत हासिल है. वह वसुंधरा राजे के दोनों कार्यकाल में 2003-2008 और 2013-2018 के दौरान अतिरिक्त महाधिवक्ता (AAG) रह चुके हैं. वकालत के साथ-साथ गुरुचरण सिंह गिल एक बहुत ही संवेदनशील इंसान हैं और वह राष्ट्रहित के मामलों में कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए हमेशा अग्रिम पंक्ति में खड़े नजर आते हैं.

मंदिर निर्माण पर कार सेवकों को ऐसे किया याद

एडवोकेट गुरुचरण सिंह गिल से सवाल पूछा गया कि आप कारसेवक रहे हैं और अब रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में यजमान के तौर पर शामिल रहे, इस पूरे सफर को आप कैसे देखते हैं? इसके जवाब में उन्होंने बताया कि प्रभु ने कृपा करके हमें जजमान के नाते वहां बुलाया. जब हम वहां राम का मंत्र जाप कर रहे थे तब मेरे सामने वो लाखों आत्माएं आ रही थीं जिन्होंने राम मंदिर को स्वतंत्र करवाने के लिए अपने जीवन की आहुति दी. मुझे उन आत्माओं का भी आभास हो रहा था कि जो कभी राम मंदिर को टाट और कभी जर्जर अवस्था वाले स्थान पर देखते थे. वो भी सब आनंदित हो रहे थे कि आज राम का भव्य घर बन गया है. आज उनकी प्राण प्रतिष्ठा हो रही है. वो सारे अहसास मेरे अंदर ऐसे ही आ रहा था और वो सब याद करके मेरी आंखों से आंसू झर रहे थे.

राम मंदिर निर्माण को बताया न्याय की जीत

एडवोकेट गुरुचरण सिंह गिल राममंदिर के निर्माण में न्यायपालिका की भूमिका को कैसे देखते हैं और क्या ये न्याय की जीत है? इसके जवाब में गुरुचरण सिंह गिल ने कहा कि ये बहुत बड़ी दुखद स्थिति थी कि भगवान राम का आदर्श, भगवान राम का नाम, वहां के जीवन कण-कण में व्याप्त है, एक-एक व्यक्ति के हृदय में व्याप्त है लेकिन उनके जन्म स्थान को वापिस लेने में इतने सालों लग गए. आक्रांताओं ने या मैं इसे कहूं कि कई बार मुगलों ने उसके बाद अफगानियों ने हरमिंदर साहब को मिटाया तो क्या ऐसा थोड़ी ना कि हम वापस नहीं बदलेंगे? पुनर्स्थापना की गई महाराजा रणजीत सिंह जी ने मंदिर बनवाया और स्वर्ण चढ़ाया. जिस दिन सोमनाथ जी के मंदिर का जीर्णोद्धार था देश स्वतंत्र होते ही राम मंदिर का भी होना चाहिए था. लेकिन राजनीतिक संकुचितता के कारण हमने इसको न्यायिक प्रक्रिया में डाला. फिर हिंदू समाज का धैर्य देखिए कि उन्होंने उस राजनीतिक प्रक्रिया को बहुत सहज और सामान्य तरीके से लेकर इस परिणीति तक पहुंचाया. बहुत शांत रहे. वास्तविक कारसेवा जन जागरण के लिए थी. जो शिला पूजन हुआ था वो भी जन जागरण के लिए था. जो भारतीय हिंदू मानष है खासकर इसकी जो सहज समझ है उसके तहत उन्होंने जो संघर्ष के बाद प्राप्त किया है. ये न्यायिक प्रक्रिया ने भी पूर्णत न्याय किया है.

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