कौन हैं गोविंदभाई ढोलकिया जिन्हें बीजेपी भेज रही राज्यसभा, राम मंदिर के लिए 11 करोड़ देकर आए थे चर्चा में

कौन हैं गोविंदभाई ढोलकिया जिन्हें बीजेपी भेज रही राज्यसभा, राम मंदिर के लिए दिया था 11 करोड़ का चंदा

Who is Govind dholakia: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने राज्यसभा चुनाव के लिए गुजरात से 4 उम्मीदवारों की सूची जारी की है जिनमें प्रसिद्ध हीरा कारोबारी गोविंद भाई ढोलकिया का भी नाम है. गोविंद भाई ढोलकिया वही शख्स हैं, जिन्होंने अयोध्या में राम मंदिर के लिए 11 करोड़ रुपये का दान दिया था.

श्री रामकृष्ण एक्सपोर्ट्स के फाउंडर गोविंद भाई ढोलकिया गुजरात के सूरत से ताल्लुक रखते हैं. वह कई सालों से आरएसएस से जुड़े रहे हैं. वे 1992 में राम जन्मभूमि आंदोलन के समय कारसेवक भी रहे. हर साल दीपावली के वक्त भी गोविंद भाई ढोलकिया काफी सुर्खियों में रहते हैं क्योंकि वे अपने यहां काम करने वाले हजारों स्टाफ और उनके परिवार को कीमती तोहफा देते हैं.

अमित शाह ने फोन करके दी जानकारी

महज छठी कक्षा तक पढ़े गोविंद भाई ने कहा कि वह 15-16 साल की उम्र में पढ़ाई छोड़कर सूरत आ गए थे. उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह राजनीति में जाएंगे या राज्यसभा में जाएंगे. राज्यसभा उम्मीदवारी पर उन्होंने कहा कि अमित शाह ने फोन करके उन्हें इस बात की जानकारी दी. अमित शाह ने उनसे कहा कि उन्होंने और नरेंद्र भाई मोदी ने उन्हें राज्य सभा भेजने का तय किया है.

कौन हैं गोविंद भाई ढोलकिया?

गोविंद ढोलकिया को गोविंदकाका के नाम से जाना जाता है. उन्होंने श्री रामकृष्ण (एसआरके) एक्सपोर्ट्स की स्थापना की है. दरअसल, यह कंपनी दुनिया के अग्रणी हीरा क्राफ्टिंग और निर्यात समूह में से एक है. उनकी इस फर्म में 6 हजार से ज्यादा लोग काम करते हैं. सूरत के कतारगाम में ‘एसआरके एम्पायर’ और SRK के मुख्यालय के रूप में 9 मंजिला SRK हाउस है. तीन दशक पहले सूरत को हीरा पॉलिशिंग के क्षेत्र में वैश्विक मानचित्र पर लाने का श्रेय एसआरके को ही जाता है.

कैसे बने हीरा कारोबारी?

गोविंद भाई ने एक इंटरव्यू में बताया था कि वह भीषण गर्मी में 14 घंटे खेतों में काम करते थे. 1964 में जब पहली बार सूरत आए, तो हीरा पॉलिश का काम करने लगे. हीरा पॉलिश करने के दौरान 28 फीसदी खुरदरे पत्थर को चमकदार हीरे में बदला जाता था. बाकी कचरा हो जाता था. मेहनत से काम करते हुए ढोलकिया ने 28 की जगह 34 प्रतिशत पत्थर को बचा लिया. जिसकी कीमत बहुत थी. गोविंद भाई ने बताया था कि मेरे काम से खुश होने की बजाय मालिक ने मुझसे कहा कि जो कचरा बचा है, इसे काट-छांटकर छोटे-छोटे हीरे तैयार करो. मैंने मना कर दिया. इस दौरान मुझे एहसास हुआ कि अगर मैं पत्थर से 6 प्रतिशत ज्यादा हीरे तैयार कर सकता हूं, तो फिर मुझे अपना खुद का बिजनेस शुरू करना चाहिए. इसके बाद 1970 में गोविंदकाका ने अपने दोस्तों संग मिलकर एक कंपनी खोलने का निर्णय लिया. ऐसे में उन्होंने ‘रामकृष्ण डायमंड’ नामक एक हीरा कंपनी की शुरुआत की, जिसके बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

The Kalandar Post

Don't miss the Post!

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

close
The Kalandar Post

Don't miss the Post!

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.