Birthday Special: एडवोकेट माही यादव, जिनकी PIL ने लड़कियों के लिए सैनिक स्कूलों में खोला एडमिशन का रास्ता

आज का जो बहरोड़-कोटपूतली जिला है उसका कोटपूतली उस समय जयपुर जिले में ही हुआ करता था. इसी कोटपूतली का एक गांव है भैंसलाना. ये वही भैंसलाना गांव है जिसके काले संगमरमर की पहचान पूरे देशभर में है. मगर आज के समय में गांव की पहचान फिर सुर्खियों में है. जी हां, राष्टीय फलक पर इस चर्चा का कारण है गांव की बेटी एडवोकेट माही यादव जो अपनी काबिलियत के दम पर वर्तमान में राजस्थान हाईकोर्ट में अतिरिक्त महाधिवक्ता बनी हैं. एडवोकेट माही यादव अपनी साफगोई के लिए जानी जाती हैं और इसी अंदाज में सरकार का पक्ष रखती नजर आती हैं. अनुशासन के प्रति बेहद ही सख्त मिजाज रखने वाली माही के व्यक्तित्व का दूसरा पहलू उनका सरल, सौम्य एवं सुलभ होना भी है. आज एडवोकेट माही यादव के जन्मदिन के अवसर पर जानेंगे की क्यूँ पूरे समाज को इन पर नाज होना लाजिमी है.

तारीख़ 07 जुलाई वर्ष 1982 का दिन. गांव के किसान बी.आर. यादव के यहां एक बिटियां जन्म लेती है. नाम रखा जाता है माही. किसान पिता अपनी बेटी की परवरिश में कभी कोई कमी नहीं रखते हैं या कहें की पालन-पोषण में बेटा-बेटी का भेद कभी नहीं रखा. बेटों के साथ बिटियां को भी स्कूल में दाखिला दिलवाया जाता है. बेटी माही जब अच्छे नंबरों से दसवीं कक्षा उत्तीर्ण करती है तो घोड़ी पर बैठाकर शोभायात्रा निकाली जाती है. उसकी हौंसला अफ़जाई के इस अंदाज से समाज को बेटियों के प्रति धारणा बदलने के लिए खास संदेश भी दिया गया. उस वक्त तो शायद ही किसी को यह भान होगा कि यह बेटी आगे चलकर पूरे गांव का ही नाम रोशन करेगी.

माही हैं कॉर्पोरेट लॉयर, जस्टिस समीर जैन के चैम्बर से शुरू की थी प्रैक्टिस

एडवोकेट माही यादव राजस्थान हाईकोर्ट की जानी-मानी कॉर्पोरेट लॉयर हैं. माही ने अपनी वकालत की शुरुआत दिग्गज कॉर्पोरेट ए़डवोकेट समीर जैन के चैम्बर से की थी. बता दें कि वर्तमान में समीर जैन राजस्थान हाईकोर्ट में सीनियर जज हैं. अनुशासन और साफगोई की बात पर माही कहती हैं कि परिवार के बाद मैंने यह सब अपने गुरु समीर जैन साहब से ही सीखा है.

माही की जनहित याचिका और लड़कियों को मिलने लगा सैनिक स्कूलों में दाखिला

माही जब कॉलेज में पढ़ाई कर रही थी तब एक रोज अखबार में ऐसा ऐड देखती हैं जो लैंगिक भेदभाव को दर्शाता था. विज्ञापन सैनिक स्कूल में एडमिशन को लेकर था लेकिन वहां जो एक लाइन लिखी थी उसने माही को मानसिक रूप से झकझोर दिया. वह लाइन थी-ओनली फोर बॉयज. माही कहती हैं कि मेरे परिवार से कई पीढ़ियों के लोग भारतीय सेना में रहकर देश सेवा करते आये हैं और मैं उन सभी से सैनिक स्कूल और नेशनल मिलिट्री स्कूल में लड़कियों के ए़डमिशन नहीं होने की टीस के साथ ही इसकी संभावनाओं के बारे में बात करती रहती थी.

कुछ सालों बाद एक सुबह फिर माही की नजर में ऐसा ही विज्ञापन आ जाता है. इस बार माही ठान लेती है कि अब वह चुपचाप नहीं बैठने वाली है. क्यूँकि अब माही वकील बन चुकी थी. अब माही पर महिला अधिकारों की जानकारी के साथ लैंगिक भेदभाव को खत्म करवाने का जज्बा सवार हो चुका था. वर्ष 2016 में एडवोकेट माही ने सैनिक स्कूलों में लड़कियों को भी दाखिला दिये जाने एवं इस तरह के लैंगिक भेदभाव को खत्म किये जाने के लिए राजस्थान हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिला की. कोर्ट ने इस पीआईएल पर केंद्र सरकार को आदेश देकर पॉलिसी बनाने के निर्देश दिए. माही की यह कानूनी लड़ाई रंग लाई और इस तरह सैनिक स्कूलों में लड़कियों के ए़डमिशन की राह खुली.

लोगों के चेहरों की खुशी देती है सच्चा सुकून

ए़डवोकेट माही यादव कहती हैं कि लोगों के चेहरों की खुशियां ही उन्हें सच्चा सुकून देती हैं. यह सब संस्कार पारिवारिक विरासत में मिलना बताती है. माही कहती हैं कि उन्हें पब्लिक इश्यूज पर काम करना पसंद है. इसके लिए इन्हें दर्जनों पुरस्कारों से सम्मानित भी किया जा चुका है. माही लोगों के खिले चेहरों को ही अपनी सबसे बड़ी फीस मानती हैं और नेकदिली को ही अपना फर्ज.

निराली है देशप्रेम की भावना

माही की देशप्रेम की भावना भी अजब है. माही कहती हैं कि यूँ तो मुझे सिर्फ खूब पढ़ने का ही शौक है लेकिन इससे ज्यादा अगर कुछ है तो वह है राष्ट्रगान गाना-सुनना. माही बताती है कि उस समय मैं सिर्फ 5-6 कक्षा में हुआ करती थी जब हमारे घर में पहली बार ब्लैक एंड व्हाइट टीवी आया. परिवार के सभी लोग एक साथ समाचार देखते और रात 10.30 बजे आने वाला सीरियल परमवीर चक्र. परिवार के लोग भारतीय सेना में रहकर देशसेवा कर रहे थे ऐसे में देशप्रेम की भावना तो संस्कारों में ही मिली है लेकिन परमवीर चक्र सीरियल से राष्ट्रगान ने बालमन पर ऐसी जगह बना ली जो कि हमेशा के लिए अमिट रहेगी. माही सिर्फ इसलिए क्रिकेट मैच या फिल्में देखती हैं कि दोनों के शुरू होने से पहले दर्शकों द्वारा सामूहिक राष्ट्रगान होता है तो उन्हें एक ही समय में करोड़ों लोगों द्वारा देखा-सुना जाता है और देशप्रेम की लौ एक साथ लोगों के दिलों में धड़कती है.

जानवरों के प्रति दयालुता ऐसी की गाड़ी में लेकर घूमती हैं उनके लिए खाना-पानी

ए़डवोकेट माही यादव की जानवरों के लिए दयालुता कुछ ऐसी है कि उनके लिए खाना-पानी गाड़ी में लेकर ही घूमती हैं. छोटू (वह दूधमुहां पिल्ला जो बचपन में ही अपनी मां से बिछड़ गया था या उसे हमेशा के लिए खो दिया था) और सुनहरी इनके परिवार के अभिन्न अंग बन चुके हैं. जिस आवासीय सोसायटी में माही रहती हैं वहां नीचे ऐसे ही बेजुबान भूखे-प्यासे जानवरों के लिए खाना-पानी की व्यवस्था करके रखती हैं. इनके लिए माही कहती हैं कि लोग कहते है कि जानवर बोलते नहीं हैं लेकिन ये बोलते भी हैं और समझते हैं बस हमें इन्हें समझना आना चाहिए.

राष्ट्रीय समाचार पत्र-पत्रिकाओं में कानूनी जागरूकता वाले आलेख होते हैं प्रकाशित

ए़डवोकेट माही यादव लोगों को अपने अधिकारों को जानने के लिए कहती हैं. इसके लिए इनके द्वारा बहुत कुछ लिखा भी जाता है. कानूनी जानकारी देने वाले इनके आलेख देश के राष्ट्रीय समाचार पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं जो कि आमजन के साथ ही कानूनी पढ़ाई वाले छात्रों के लिए बहुत ही मददगार होते हैं.

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