झारखंड में साल के आखिरी महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं. लेकिन इससे पहले राजनीतिक हलचल बढ़ गई है. बीजेपी ट्राइबल वोटबैंक में सेंध लगाने के लिए बड़े चेहरे की तलाश में है. पूर्व सीएम और जेएमएम नेता चंपई सोरेन के बीजेपी में शामिल होने की अटकलें चल रही है.
अभी चंपई सोरेन जेएमएम नेतृत्व के टच में नहीं हैं और उनका बीजेपी में जाना तय माना जा रहा है. चंपाई सोरेन इस वक्त दिल्ली में हैं. चंपई ने भी सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए अपनी नाराजगी साफ कर दी है और कहा है कि उनके लिए सारे विकल्प खुले हैं.
चंपई सोरेन की बीजेपी नेताओं से फोन पर हुई बात
झारखंड के मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाया गया था और फिर जब हेमंत जेल से बाहर आए तो चंपई की जगह फिर हेमंत ने ले ली. इसके बाद से यह चर्चा होने लगी कि चंपई सोरेन हेमंत सोरेन से नाराज हैं. सूत्रों के मुताबिक, चंपई शनिवार को कोलकाता पहुंचे और फिर रविवार दोपहर दिल्ली में पहुंच गए. माना जा रहा है कि बीजेपी के कुछ सीनियर नेताओं से उनकी फोन पर बातचीत भी हुई है और जल्द ही आमने सामने की मीटिंग भी हो सकती है.

JMM के 5-6 विधायक भी बीजेपी के संपर्क में
चंपाई सात बार के विधायक हैं और पूर्व सीएम भी हैं. अगर वह बीजेपी में शामिल होते हैं तो यह जेएमएम के लिए झटका होगा. झारखंड में अभी जेएमएम-कांग्रेस गठबंधन की सरकार है. राज्य में कुल 82 विधानसभा सीटें हैं और इसमें से जेएमएम के पास 26, कांग्रेस के पास 16, बीजेपी के पास 22 और आजसू पार्टी के पास 3 विधायक हैं. चंपई सोरेन के अलावा जेएमएम के 5-6 और विधायकों के भी अलग से बीजेपी के संपर्क में होने की चर्चा चल रही है.
चंपई ने कहा- सभी विकल्प खुले
चंपाई सोरेन ने जेएमएम को कटघरे में खड़े करते हुए सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा है कि मैंने हमेशा जन सरोकारों की राजनीति की है. जब वर्षों से पार्टी के केन्द्रीय कार्यकारिणी की बैठक नहीं हो रही है, और एकतरफा आदेश पारित किए जाते हैं, तो फिर किसके पास जाकर अपनी तकलीफ बताता? कहने को तो विधायक दल की बैठक बुलाने का अधिकार मुख्यमंत्री का होता है, लेकिन मुझे बैठक का एजेंडा तक नहीं बताया गया था. बैठक के दौरान मुझ से इस्तीफा मांगा गया. मैं आश्चर्यचकित था, लेकिन मुझे सत्ता का मोह नहीं था, इसलिए मैंने तुरंत इस्तीफा दे दिया. आज से मेरे जीवन का नया अध्याय शुरू होने जा रहा है।’ इसमें मेरे पास तीन विकल्प थे। पहला, राजनीति से सन्यास लेना, दूसरा, अपना अलग संगठन खड़ा करना और तीसरा, इस राह में अगर कोई साथी मिले, तो उसके साथ आगे का सफर तय करना.