Birthday Special: जब जान से मारने की धमकी के बावजूद लालचौक पहुंच गया ये स्वयंसेवक, आतंक की छाती पर तिरंगा गाड़कर देश के दुश्मनों को दिया था जवाब

नरेंद्र मोदी जब स्कूल में थे तभी उन्होंने आरएसएस का दामन थाम लिया था. ये वो संगठन था जिसके स्वयंसेवकों ने देश को आजाद करवाने के लिए अपने तरीके से एक लंबी लड़ाई लड़ी थी. यही वजह है कि इसके हर एक स्वयंसेवक की रगों में देशभक्ति का जज्बा खून बनकर दौड़ता है. नरेंद्र मोदी में भी देशभक्ति का जुनून सवार था. उन्होंने आरएसएस की पाठशाला में ही देशभक्ति का क, ख, ग सीखा और गृहस्थ जीवन को त्यागकर अपने आप को देशसेवा के लिए झोंक दिया.

1991 का साल था. उन दिनों कश्मीर में आतंकवाद अपने चरम पर था. आतंकवादी हमारे राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का अपमान करते थे. वे झंडे को अपने पैरों तले रौंद देते थे और उसे जला देते थे. उनमें से कुछ तो झंडे से अपनी गाड़ियाँ और जूते भी साफ करते थे और ये सब वे कैमरे पर करते थे. ये दृश्य देश के लोगों के दिलों में आग लगा देता था. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अदने से स्वयंसेवक नरेंद्र मोदी से भी रहा नहीं गया. उन्होंने एक संकल्प लिया कि हम कश्मीर के लालचौक पर तिरंगा फहराकर रहेंगे और इसके लिए उन्होंने दिसंबर 1991 में देशभर के स्वयंसेवकों के साथ कन्याकुमारी से कश्मीर के लालचौक तक एकता यात्रा शुरू कर दी.

इस बीच 23 जनवरी 1992 को नापाक आतंकवादियों ने फगवाड़ा में एकता यात्रा के लिए कश्मीर जा रहे यात्रियों की बसों पर हमला कर दिया जिसमें 6 लोगों की मौत हो गई और दर्जनों लोग घायल हो गए. यहां तक कि आतंकियों ने खुली धमकी देना शुरू कर दिया. उन्होंने श्रीनगर की दीवारों पर लिख दिया था कि जिसने अपनी मां का दूध पिया है, वो लाल चौक पर आकर तिरंगा फहराकर दिखाए. अगर वो जिंदा लौट गया तो हम उसे इनाम देंगे.

आतंकवादी ऐसी धमकी दे और नरेंद्र मोदी चुप बैठ जाएं, ऐसा कैसे हो सकता था. उन्होंने 25 जनवरी को एकता यात्रा के मंच से कहा कि आतंकियों कान खोलकर सुन लो, 26 जनवरी में चंद घंटे बाकी हैं. मैं 26 जनवरी को ठीक 11 बजे श्रीनगर के लाल चौक पर पहुंचूंगा. मैं कोई बुलेटप्रूफ जैकेट नहीं पहनूंगा. मैं किसी बुलेटप्रूफ गाड़ी में नहीं बैठूंगा. मेरे हाथ में तिरंगे के अलावा कुछ नहीं होगा. लाल चौक में फैसला हो जाएगा कि किसने अपनी मां का दूध पिया है. नरेंद्र मोदी की इस धमकी से तो भारत सरकार के भी हाथ-पांव फूल गए. उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी. वो इस यात्रा को रोकना चाहती थी लेकिन इसे लोगों का इतना जबरदस्त समर्थन मिला हुआ था कि वो चाहकर भी कुछ नहीं कर सकी.

एकता यात्रा जब कश्मीर पहुंची तब आतंकवादियों ने पुलिस मुख्यालय पर एक ग्रेनेड विस्फोट कर दिया. उसमें तत्कालीन पुलिस महानिदेशक जेएन सक्सेना घायल हो गए. सुरक्षाबलों पर हुए इस हमले के बाद नरेंद्र मोदी के मन की ज्वाला और तेजी से भभक उठी. स्थिति को भांपते हुए प्रशासन ने नरेंद्र मोदी समेत एकता यात्रा की अगुवाई कर रहे नेताओं को एयरलिफ्ट करके श्रीनगर पहुंचा दिया. नरेंद्र मोदी 26 जनवरी को ठीक 11 बजे 300-400 लोगों के साथ कश्मीर के लालचौक पहुंच गए और वहां पर आतंकवादियों की छाती में तिरंगा गाड़कर देश के लोगों का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया. उन्होंने साबित कर दिया कि वह भारत मां के सच्चे सपूत हैं.

लालचौक पर तिरंगा फहराना नरेंद्र मोदी के लिए कोई आसान काम नहीं था. इस बीच वह जिदंगी और मौत के बीच जूझ रहे थे. जब वह लालचौक पर तिरंगा फहरा रहे थे, तब दुश्मन देश पाकिस्तान और उसके आतंकी रॉकेट दाग रहे थे और बारूद से उन पर हमला कर रहे थे. उनसे कुछ मीटर और गज की दूरी पर बम फट रहे थे. इसके बावजूद वह टस से मस नहीं हुए और तिरंगा फहराकर ही दम लिया.

तिरंगा फहराने का सबसे बड़ा असर फौज और जनता के मनोबल पर पड़ा. क्योंकि उन्होंने पहली बार देखा कि नरेंद्र मोदी जैसे किसी देशभक्त ने आतंकवादियों को सीधे चुनौती दी है और उनके नापाक इरादों को ध्वस्त करते लालचौक पर तिरंगा फहराया है.

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