Solicitor General Birthday Special: मोदी-शाह के खास जिन्होंने धारा 370 हटवाने में निभाया सबसे अहम रोल, 12 साल की उम्र में पिता को खोया और फिर वकालत की दुनिया में छुई बुलंदियां

आज देश के सॉलिसिटर जनरल और सुप्रीम कोर्ट में मोदी सरकार के संकटमोचक तुषार मेहता का जन्मदिन है. 11 सितंबर 1964 को उनका जन्म गुजरात के जामनगर में हुआ था. वह देश के उन विरले वकीलों में से हैं जिन्होंने कड़ी मेहनत और काबिलियत के दम पर फर्श से अर्श तक का सफर तय किया है. नरेंद्र मोदी के सीएम रहते हुए सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस में गुजरात सरकार के तत्कालीन गृहमंत्री अमित शाह को जब फंसाया जा रहा था, उस समय तुषार मेहता ही थे जिन्होंने कोर्ट में अमित शाह की पैरवी की और अंतत: अमित शाह को 2014 में इस केस में बरी कर दिया गया. यह अकेला मौका नहीं है जब उन्होंने नरेंद्र मोदी और अमित शाह को संकट से निकाला हो. जब वह केंद्र में एएसजी बनकर दिल्ली आए, उसके बाद भी उन्होंने अनेकों बार मोदी सरकार को संकट से बाहर निकाला है. उनकी काबिलियत का ही नतीजा है कि लंबे समय से नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसे नेता उनके क्लाइंट्स रहे हैं.

शुरू से ही थे काफी मेधावी

बचपन में ही टूट पड़ा था मुसीबतों का पहाड़

सीके दफ्तरी के बाद देश के दूसरे सबसे लंबे समय तक सॉलिसिटर जनरल रहने वाले तुषार मेहता का बचपन काफी उतार-चढ़ावों और संघर्षों से भरा रहा है. जब वह महज 12 साल के थे तभी उन्होंने अपने पिताजी को खो दिया और उनके ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. हालांकि वह समय के इन सितमों से टूटे नहीं बल्कि और मजबूत होकर निकले व अहमदाबाद आ गए. उन्होंने यहां एलए शाह लॉ कॉलेज से एलएलबी करने के बाद एक वकील के रूप में अपने करियर को धार देना शुरू किया.

देश के सबसे ताकतवर नेताओं से है गहरी दोस्ती

साल 2000 में मेहता, विभिन्न अदालतों में अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक को रिप्रेजेंट करने लगे, जिसके अध्यक्ष अमित शाह थे. उन्होंने गुजरात क्रिकेट असोसिएशन के चुनाव के मामले में भी शाह की पैरवी की. साल 2009 में शाह गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के वाइस प्रेसिडेंट बने थे. एक बार फिर साल 2010 में मेहता ने सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ मामले में गुजरात सरकार की पैरवी की जिसमें गुजरात के तत्कालीन गृहमंत्री अमित शाह को फंसाया गया था. इस केस में शाह को बरी करवाकर मेहता ने अपनी काबिलियत का ऐसा लोहा मनवाया कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह उनके काम के मुरीद हो गए. न केवल इतना बल्कि ये दोनों नेता उनके इतने करीब आ गए कि वे हमेशा के लिए दोस्त बन गए. यही नहीं, मेहता दिवंगत बीजेपी नेता अरुण जेटली के भी काफी करीबी थे.

पीएम मोदी ने खुद कॉल करके बुलाया दिल्ली

साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो उन्हें पता था कि तुषार मेहता जैसे काबिल शख्सियत की दिल्ली में बहुत जरूरत पड़ेगी. यही वजह है कि प्रधानमंत्री बनते ही नरेंद्र मोदी ने साल 2014 में तुषार मेहता को सुप्रीम कोर्ट में भारत सरकार का अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल बनाकर दिल्ली बुला लिया. इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें खुद कॉल करके दिल्ली आने का न्योता दिया था. मेहता ने तो एक मौके पर यहां तक कहा था कि दिल्ली में उनकी नियुक्ति चौंकाने वाली थी. उन्होंने कुछ समय पहले ही अहमदाबाद में अपने ऑफिस को रेनोवेट कराया था और अचानक एक दिन पीएम ने उन्हें फोन कर बुला लिया. 2017 में जब मुकुल रोहतगी ने अटॉर्नी जनरल पद छोड़ा तो समय के साथ मेहता लगातार मजबूत होते गए और उन्हें राजनीति से जुड़े बड़े केस में पेश होने के मौके मिलने लगे. फिर चाहे वह जज बीएच लोया की मौत से जुड़ा केस हो या रोहिंग्याओं को वापस भेजने का केस और धारा 35ए की वैधता को चुनौती देने का मामला. अक्टूबर 2017 में तत्कालीन सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने निजी कारणों का हवाला देकर पद से इस्तीफा दे दिया. यह पद एक साल तक खाली रहा और बाद में 10 अक्टूबर 2018 को इस पद पर तुषार मेहता को नियुक्ति दी गई.

मोदी सरकार के लिए कई बार बने संकटमोचक

मोदी सरकार के लिए 60 साल के तुषार मेहता ने अब तक कई बड़े-बड़े मामलों में कोर्ट में पैरवी करके संकटमोचक का काम किया है. फिर चाहे सुप्रीम कोर्ट एवं दिल्ली हाईकोर्ट में कोरोनावायरस मैनेजमेंट और ऑक्सीजन की कमी का मुद्दा हो या दिल्ली जिला अदालत में पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम की जमानत का विरोध करना हो या फिर राजधानी दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों में एफआईआर दर्ज करने में हुई देरी में सरकार की पैरवी करना हो, सभी में उन्होंने अपने कानूनी तर्कों से सरकार को संकट से बाहर निकाला है. जब से मेहता दिल्ली आए हैं तब से अब तक उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की आंख, कान और नाक बनकर काम किया है. निश्चित रूप से भविष्य में भी,सरकार का उनपर यह भरोसा कायम रहने वाला है.

जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने में निभाया अहम रोल

जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने को विशेषज्ञ कानूनी रूप से असंभव बताते आए थे. लेकिन केंद्र की मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने का बड़ा कदम उठाया जिसकी न केवल देशभर में बल्कि विदेशों में भी खूब तारीफ की गई. सरकार के इस ऐतिहासिक फैसले के पीछे तुषार मेहता का ही दिमाग था. उन्होंने ही इस मसले पर मोदी सरकार को कानूनी राय दी थी और ऐसा तोड़ निकाला था कि कानून के दायरे में रहते हुए ही कश्मीर से धारा 370 हटाई जा सके. तुषार मेहता अकेले ऐसे शख्स थे जिन्होंने धारा-370 हटाने के कानूनी दांव-पेंच से लेकर कोर्ट में इसकी वैधता को साबित करने के लिए सरकार की पैरवी करने तक सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

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