आदिवासी परिवार में जन्मीं, बच्चों और पति की मौत के बाद झेली पीड़ा, जानें द्रौपदी मुर्मू ने जज्बे और जुनून से कैसे तय किया रायसीना हिल का सफर

महामहिम द्रौपदी मुर्मू के जीवन की कहानी महिलाओं के अदम्य साहस, संघर्ष और समर्पण की कहानी है. यह साबित करता है कि यदि किसी के अंदर जुनून और समर्पण हो, तो कोई भी मुश्किल रास्ता उसे अपने लक्ष्य तक पहुँचने से नहीं रोक सकता. आज वह भारत की राष्ट्रपति हैं, लेकिन रायसीना हिल तक पहुँचने का उनका ये सफर आसान नहीं था. यहां तक पहुंचने में उन्हें कई पीड़ाओं से गुजरना पड़ा लेकिन उनके जुनून और जज्बे के आगे हर वो चीज हार गई जो उन्हें आगे बढ़ने से रोक सकती थी.

आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर द कलंदर पोस्ट की खास सीरीज तोड़ो बेड़ियां कम नहीं बेटियां के तहत हम आपको महामहिम द्रौपदी मूर्मू के जीवन की उस कहानी से परिचय करवा रहे हैं जिससे दुनिया की करोड़ों महिलाएं प्रेरणा ले रही हैं.

द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले के छोटे से गाँव उपरबेड़ा में हुआ था. एक आदिवासी परिवार में जन्मी द्रौपदी का बचपन तंगहाली और संघर्षों से भरा हुआ था. गाँव में न तो पर्याप्त संसाधन थे और न ही स्कूल जाने के लिए आसानी से रास्ते. लेकिन इन सबके बावजूद, द्रौपदी ने शिक्षा के प्रति अपनी जिद को कभी कम नहीं होने दिया.

नंगे पांव स्कूल जाती, बारिश में नदी तैरकर स्कूल पहुंचीं

द्रौपदी के लिए शिक्षा केवल किताबों तक सीमित नहीं थी, बल्कि यह उनके लिए आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास का मार्ग थी. संथाली परंपरा के अनुसार, उनका नाम दुर्गी रखा गया था, लेकिन उनके शिक्षक ने उनका नाम द्रौपदी रखा. यह नाम उनके जीवन में एक नए अध्याय का आगाज था. उनका बचपन कठिनाइयों से भरा हुआ था. पैदल और नंगे पाँव स्कूल जाना, दो जोड़ी कपड़ों में गुजारा करना, और घर के कामों के साथ पढ़ाई करना उनके रोजमर्रा का हिस्सा था.

द्रौपदी की छोटी सी उम्र में ही एक किस्सा उनके जज्बे को दर्शाता है. एक दिन भारी बारिश की वजह से स्कूल में छुट्टी की घोषणा होने वाली थी. टीचर्स को लग रहा था कि भारी बारिश में कोई बच्चा स्कूल नहीं आएगा. लेकिन द्रौपदी नदी तैरकर स्कूल पहुँच गईं. उनके इस साहस और हिम्मत ने स्कूल के प्रिंसिपल और शिक्षकों को चकित कर दिया. यह घटना केवल एक छोटी सी बालिका की शक्ति और आत्मविश्वास का प्रतीक थी, जो जीवन के मुश्किल हालातों का सामना करते हुए अपने सपनों को पूरा करना चाहती थी.

राजनीति में कदम रखने की प्रेरणा

राजनीति की ओर द्रौपदी का रुख भी एक संघर्षपूर्ण यात्रा थी. अपने जीवन के शुरुआती वर्षों में, उन्होंने शिक्षा के साथ-साथ समाज सेवा में भी भाग लिया था. वह एक आदिवासी महिला थीं, जिन्हें समाज में उठने-बैठने के लिए कई बार चुनौती दी जाती थी. लेकिन द्रौपदी ने कभी हार नहीं मानी.

1997 में, जब भाजपा ने उन्हें चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया, तो उनका परिवार शुरुआत में सहमत नहीं था. लेकिन द्रौपदी ने इस चुनौती को स्वीकार किया. उन्होंने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. यह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था, क्योंकि इससे उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत हुई, और वह ओडिशा विधानसभा की सदस्य बनीं.

4 साल के अंदर झेली बच्चों और पति की मौत की पीड़ा

द्रौपदी के जीवन में दुखों की एक लंबी श्रृंखला आई, जो उनके दृढ़ संकल्प और साहस को और भी मजबूत करती चली गई. 2010 में उनके बड़े बेटे की मौत ने उन्हें गहरे दुख में डुबो दिया. इसके बाद जनवरी 2013 में छोटे बेटे की सड़क हादसे में मौत और फिर कुछ समय बाद उनके पति की भी मृत्यु हो गई. इन दुखों ने उन्हें मानसिक रूप से तो तोड़ दिया था, लेकिन द्रौपदी ने इन्हें अपने आत्मविश्वास और हिम्मत के साथ पार किया.

अपने दुखों से उबरने के लिए उन्होंने ध्यान और साधना का सहारा लिया और धीरे-धीरे फिर से उठ खड़ी हुईं. वह जानती थीं कि उनके अंदर कुछ ऐसा है जो समाज को और दुनिया को दिखाना है. इससे उनके अंदर राजनीति के प्रति एक नई जिम्मेदारी और प्रेरणा का जन्म हो गया.

रायसीना हिल तक का सफर

द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनने तक का सफर कई मोड़ों से भरा था. जब वह झारखंड की राज्यपाल बनीं, तब उन्होंने शिक्षा, महिला सशक्तिकरण और आदिवासी कल्याण के लिए कई पहलें कीं. उनकी लोकप्रियता और कड़ी मेहनत ने उन्हें झारखंड के लोगों का दिल जीतने में मदद की. 2016 में उन्होंने अपने ससुराल के गाँव में एक स्कूल खोला, जिसका नाम उनके पति और बेटों की याद में “श्याम लक्ष्मण सिपुन मेमोरियल स्कूल” रखा गया.

25 जुलाई 2022, द्रौपदी मुर्मू के जीवन में एक ऐतिहासिक दिन था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उन्हें भारतीय राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में नामित किया गया. वह भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बनीं, और उनका यह सफर न केवल ओडिशा या झारखंड, बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणा बन गया.

आज दुनियां की करोड़ों महिलाएं हो रहीं प्रेरित

राष्ट्रपति बनने के बाद द्रौपदी मुर्मू ने न केवल एक महिला बल्कि एक आदिवासी समाज की शक्ति और स्वाभिमान को दुनिया के सामने रखा. उनकी यात्रा यह साबित करती है कि अगर किसी में आत्मविश्वास और संघर्ष की भावना हो, तो कोई भी मुश्किल मंजिल को हासिल किया जा सकता है. उनके जीवन की कहानी हमें यह सिखाती है कि संघर्ष, मेहनत और दृढ़ नायकत्व से ही सफलता मिलती है, और इस सफलता का कोई भी मार्ग आसान नहीं होता.

द्रौपदी मुर्मू का जीवन सिर्फ एक आदर्श नहीं, बल्कि दुनिया की उन करोड़ों महिलाओं और बच्चों के लिए एक प्रेरणा है, जो अपनी कठिन परिस्थितियों में भी उम्मीद नहीं छोड़ते और अपने सपनों को पूरा करने के लिए लगातार संघर्ष करते हैं. उनका जीवन यह संदेश देता है कि सपने बड़े हों तो रास्ते खुद बन जाते हैं, और अगर हिम्मत और संघर्ष के साथ लक्ष्य की ओर बढ़ते रहें, तो शिखर तक पहुँचना मुश्किल नहीं है.

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