Ratan Tata Birthday: जब रतन टाटा ने बिना बताए फोर्ड चेयरमैन से 9 साल बाद लिया अपने अपमान का बदला, जानें रोचक किस्सा

Ratan Tata Birthday: जब रतन टाटा ने बिना बताए फोर्ड चेयरमैन से 9 साल बाद लिया अपने अपमान का बदला, जानें रोचक किस्सा

Ratan Tata Birthday: भारतीय उद्योगपति और टाटा संस के मानद चेयरमैन रतन टाटा ने भारत में पहली बार पूर्ण रूप से स्वदेशी कार ‘टाटा इंडिका’ कार बनानी शुरू की. यह टाटा का ड्रीम प्रोजेक्ट था लेकिन वह सफल नहीं हो पाए और कंपनी घाटे में चलती चली गई. एक साल के अंदर ही रतन टाटा ने अपने कार कारोबार को बेचने का फैसला किया. जब वह अमेरिका की बड़ी कार कंपनी फोर्ड के चेयरमैन बिल फोर्ड से इस बारे में डील करने पहुंचे तो उन्होंने टाटा का अपमान किया. उस समय तो टाटा ये अपमान का घूंट पी गए लेकिन 9 साल बाद उन्होंने जो बदला लिया वो हर किसी को जानना चाहिए. रतना टाटा का यही जुनून उन्हें बाकी उद्योगपतियों से अलग करता है. आज हम रतन टाटा के 86वें जन्मदिन पर यह रोचक किस्सा आपके साथ साझा करने जा रहे हैं.

जब साल 1999 में रतन टाटा अपनी कार कंपनी के लिए फोर्ड के चेयरमैन बिल फोर्ड के साथ डील करने पहुंचे तो मीटिंग तय हुई. मीटिंग में बिल ने टाटा से कहा कि जब आपको इसके बारे में कोई ज्ञान या अनुभव नहीं था तो आपने पैसेंजर कार डिवीजन शुरू ही क्यों किया? बिल ने तो यहां तक कह दिया कि वह यह डील करके टाटा पर एहसान ही करेंगे. यह टाटा के लिए बड़ा अपमान था. उन्होंने तुरंत फैसला किया कि वह अपनी कार प्रोडक्शन यूनिट नहीं बेचेंगे.

9 साल बाद बिल फोर्ड को सिखाया सबक

फोर्ड के साथ डील को रद्द करके रतन टाटा भारत आ गए और टाटा मोटर्स के कार डिविजन को अपनी मेहनत से बुलंदियों पर पहुंचा दिया. फोर्ड के मुखिया से अपमान झेलने के करीब 9 साल बाद टाटा मोटर्स की कारों ने पूरी दुनिया में अपनी पहचान कायम कर ली. टाटा की कारें दुनिया की बेस्ट सेलिंग कैटेगरी में शुमार हो गई. वहीं दूसरी तरफ 2008 की वैश्विक मंदी के दौर में अमेरिकी कंपनी फोर्ड दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गई. डूबती हुई फोर्ड को उबारने का जिम्मा रतन टाटा ने लिया. इसके लिए उन्होंने फोर्ड के पॉपुलर ब्रांड जैगुआर और लैंड रोवर को खरीदने का ऑफर किया. पर इसके लिए वह खुद अमेरिका नहीं गए बल्कि फोर्ड के चेयरमैन को डील करने के लिए भारत बुलाया. रतन टाटा ने जगुआर और लैंड रोवर को 2.3 बिलियन डॉलर में खरीद लिया जो आज के हिसाब से 19 हजार करोड़ रुपये है.

टाटा स्टील की भट्ठी में चूना पत्थर डालने का काम किया

अमेरिकी तकनीकी दिग्गज आईबीएम के साथ नौकरी की पेशकश के बावजूद रतन टाटा भारत लौट आए और उन्होंने टाटा स्टील के साथ अपना करियर शुरू किया. उनके अपने ही परिवार के लोग कंपनी के मालिक थे. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने एक सामान्य कर्मचारी के तौर पर कंपनी में काम शुरू किया. उन्होंने टाटा स्टील के प्लांट में चूना पत्थर को भट्ठियों में डालने जैसा काम भी बिना किसी शर्म और संकोच के किया. उनकी यही बातें उन्हें महान बनाती हैं.

विमान उड़ाने और कारों के शौकीन हैं टाटा

रतन टाटा को विमान उड़ाने का बहुत शौक है. वह 2007 में F-16 फाल्कन उड़ाने वाले पहले भारतीय बने थे. उन्हें कारों का भी बहुत शौक है. उनके कलेक्शन में मासेराती क्वाट्रोपोर्टे, मर्सिडीज बेंज एस-क्लास, मर्सिडीज बेंज 500 एसएल और जगुआर एफ-टाइप जैसी लग्जरी कारें शामिल हैं.

ये एक बात टाटा को बाकी उद्योगपतियों से बनाती है अलग

रतन टाटा अपनी कंपनी के कर्मचारियों को सिर्फ कामगार नहीं समझते हैं. बल्कि उन्हें अपने परिवार के सदस्य की ही तरह मानते आए हैं एवं हर सुख-दुख उनके साथ साझा करते रहे हैं. वह केवल उद्योपति न होकर एक बेहतरीन संवेदनशील इंसान भी हैं. टाटा का यही अंदाज उन्हें बाकी उद्योगपतियों से अलग बनाता है.

2008 में पद्मविभूषण से नवाजे गए, भारत रत्न के हैं सच्चे हकदार

उद्योगपति रतन टाटा को भारत सरकार की ओर से 2000 में पद्मभूषण और 2008 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया जा चुका है. हालांकि वह भारत रत्न के भी सच्चे हकदार हैं. रतन टाटा देश के उन चंद उद्योगपतियों में शामिल हैं जो अपने मुनाफे से ऊपर देशहित को रखते हैं. इसीलिए देश के कोने-कोने में उनके चाहने वालों की भरमार है जो उन्हें भारत रत्न दिए जाने की मांग अक्सर करते रहते हैं.

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